पारिवारिक विरासत बन चुके या कॉरपोरेट घरानों द्वारा चलाए जा रहे मीडिया
संस्थानों के बीच किसी ऐसे संस्थान की कल्पना की जा सकती है जहां
सिर्फ पत्रकार और पाठक को महत्व दिया जाए? कोई ऐसा अखबार, टेलीविजन
चैनल या मीडिया वेबसाइट जहां संपादक पत्रकारों की नियुक्ति, खबरों की
कवरेज जैसे फैसले संस्थान और पत्रकारिता के हित को ध्यान में रखकर ले,
न कि संस्थान मालिक या किसी नेता या विज्ञापनदाता को ध्यान में रखकर।
किसी भी लोकतंत्र में जनता मीडिया से इतनी उम्मीद तो करती ही है पर
भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मीडिया के वर्तमान
माहौल में संपादकों को ये आजादी बमुयकल मिलती है। वक्त के
साथ-ंउचयसाथ पत्रकारिता का स्तर नीचे जा रहा है, स्थितियां और खराब होती
जा रही हैं।
पत्रकारिता में दिनोंदिन कई गलत प्रचलन सामने आ रहे हैं, जैसे खबरों
को गैर-ंउचयजरूरी तरीके से संपादित करना, पेड न्यूज, निजी संबंधों के लाभ
के लिए कुछ खबरों को चलाना आदि। मीडिया संस्थान अब खबर तक
पहुंचना नहीं चाहते, इसके उलट, उन्होंने पत्रकारिता की आड़ में
व्यापारिक सम-हजयौते करने -रु39याुरू कर दिए हैं, कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं और
खबरें जनता तक पहुंचती ही नहीं हैं क्योंकि मीडिया संस्थान
उन्हें किसी व्यक्ति या संस्था वि-रु39यो-ुनवजया को लाभ पहुंचाने के उद्दे-रु39यय से
सामने लाना ही नहीं चाहते। धीरे-ंउचयधीरे ही सही पर जनता भी इस बात
को सम-हजयने लगी है कि पत्रकारिता खतरे में पड़ रही है। आमजन का मीडिया
पर विश्वास कम हो रहा है। वही मीडिया जो लोकतंत्र का चैथा स्तंभ
होने का दम भरता था, अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है।
अक्तूबर 2020 में आप का सामना के अस्तित्व में आने की मुख्य वजह यही
थी। अब इसी उद्दे-रु39यय के साथ अगर पत्रकारिता को बचाए रखना है तो इसे
संपादकीय और आर्थिक स्वतंत्रता देनी ही होगी। और इसका एक ही
रास्ता है कि आमजन को इसमें भागीदार बनना होगा। जो पाठक इस तरह
की पत्रकारिता बचाए रखना चाहते हैं, सच तक पहुंचना चाहते हैं, चाहते
हैं कि खबर को साफगोई से पे-रु39या किया जाए न कि किसी के फायदे को
देखकर तो वे इसके लिए सामने आएं और ऐसे अखबार को चलाने में मदद
करें। एक समाचार पत्र के रूप में आप का सामना का संस्करण जनहित और
लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार चलने के लिए प्रतिबद्ध है। खबरों के
वि-रु39यले-ुनवजयाण और उन पर टिप्पणी देने के अलावा हमारा उद्दे-रु39यय रिपोर्टिंग के
पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने का भी है। जैसे-ंउचयजैसे हमारे संसाधन
ब-सजय़ेंगे, हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की को-िरु39या-रु39या
करेंगे।
इस उद्दे-रु39यय की तरफ ये हमारा छोटा ही सही पर महत्वपूर्ण कदम है।
पत्रकारिता के इस स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी
संसाधनों की अनुपलब्धता ही बाधा है। हमारी पाठकों से बस इतनी
गुजारि-रु39या है कि हमें प-सजय़ें, -रु39योयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने
के सु-हजयाव दें। और हमारे ट्विटर हैंडल वेबसाइट पर संपर्क करें।