नई दिल्ली। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को 600 से ज्यादा वरिष्ठ वकीलों के लिखे पत्र पर पीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने गुरुवार को कहा, दूसरों को डराना धमकाना कांग्रेस की पुरानी संकृति है। करीब 50 साल पहले उन्होंने प्रतिबद्ध न्यायपालिका की बात कही थी।
पीएम मोदी ने कहा कि वे बेशर्मी से अपने स्वार्थों के लिए दूसरों से प्रतिबद्धता चाहते हैं, लेकिन राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं।
दरअसल, देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे समेत 600 से ज्यादा वरिष्ठ वकीलों ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को चिठी लिखी है। इसमें कहा गया है कि न्यायपालिका खतरे में है और इसे राजनीतिक और व्यवसायिक दबाव से बचाना होगा।
पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को सोशल मीडिया पर चिठ्ठी वाले एक पोस्ट पर कमेंट करते हुए ये बातें लिखीं। खडग़े का जवाब- आप संविधान को चोट पहुंचाने की कला में माहिर
नरेंद्र मोदी के कांग्रेस पर आरोप लगाने के बाद पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने जवाब दिया। खडग़े ने सोशल मीडिया पर लिखा- आप (मोदी) न्यायपालिका की बात कर रहे हैं।
आप ये कैसे भूल गए कि आपके ही शासन काल में सुप्रीम कोर्ट के 4 जस्टिस को प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी थी। उन्होंने लोकतंत्र के विनाश के खिलाफ चेताया था। बाद में उनमें से एक जस्टिस को आपकी सरकार ने राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया।
खडग़े ने आगे लिखा- आप भूल गए हैं कि आपकी पार्टी ने मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल में एक पूर्व हाई कोर्ट जस्टिस को मैदान में उतारा है। उन्हें यह उम्मीदवारी क्यों दी गई? आप ही राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग लाए जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।
मोदी जी, आपकी तरफ से एक के बाद एक संस्थानों को झुकाने की कोशिश की जाती रही है, इसलिए अपने पापों के लिए कांग्रेस पार्टी पर दोष मढऩा बंद करें। आप लोकतंत्र से छेड़छाड़ करने और संविधान को चोट पहुंचाने की कला में माहिर हैं।
26 मार्च को लिखी गई चिठी में क्या है
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सीजेआई चंद्रचूड़ को चिठी लिखने वाले 600 से ज्यादा वकीलों में हरीश साल्वे के अलावा बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा, अदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होल्ला और स्वरूपमा चतुर्वेदी शामिल हैं।
वकीलों ने लिखा, रिस्पेक्टेड सर, हम सभी आपके साथ अपनी बड़ी चिंता साझा कर रहे हैं। एक विशेष समूह न्यायपालिका पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है। यह ग्रुप न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और अपने घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडे के तहत उथले आरोप लगाकर अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। उनकी इन हरकतों से न्यायपालिका की पहचान बताने वाला सौहार्द्र और विश्वास का वातावरण खराब हो रहा है। राजनीतिक मामलों में दबाव के हथकंडे आम बात हैं, खास तौर से उन केसेस में जिनमें कोई राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में घिरा है। ये हथकंडे हमारी अदालतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा हैं।
ये विशेष समूह कई तरीके से काम करता है। ये हमारी अदालतों के स्वर्णिम अतीत का हवाला देते हैं और आज की घटनाओं से तुलना करते हैं। ये महज जानबूझकर दिए गए बयान हैं ताकि फैसलों को प्रभावित किया जा सके और राजनीतिक फायदे के लिए अदालतों को संकट में डाला जा सके। यह देखकर परेशानी होती है कि कुछ वकील दिन में किसी राजनेता का केस लड़ते हैं और रात में वो मीडिया में चले जाते हैं, ताकि फैसले को प्रभावित किया जा सके। ये बेंच फिक्सिंग की थ्योरी भी गढ़ रहे हैं। यह हरकत ना केवल हमारी अदालतों का असम्मान है, बल्कि मानहानि भी है। यह हमारी अदालतों की गरिमा पर किया गया हमला है।
माननीय न्यायाधीशों पर भी हमले किए जा रहे हैं। उनके बारे में झूठी बातें बोली जा रही हैं। ये इस हद तक नीचे उतर आए हैं कि हमारी अदालतों से उन देशों की तुलना कर रहे हैं, जहां कानून नाम की चीज नहीं है। हमारी न्यायपालिका पर अन्यायपूर्ण कार्यवाही का आरोप लगाया जा रहा है।
2 पॉइंट्स का विशेष जिक्र
- राजनेताओं का दोहरा चरित्र
ये देखकर हैरत होती है कि राजनेता किसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और फिर अदालतों में उन्हें बचाने पहुंच जाते हैं। अगर अदालत का फैसला उनके पक्ष में नहीं जाता है तो वे कोर्ट के भीतर ही कोर्ट की आलोचना करते हैं और फिर बाद में मीडिया में पहुंच जाते हैं। आम आदमी के मन में हमारे लिए जो सम्मान है, उसके लिए ये दोहरा चरित्र खतरा है। - पीठ पीछे हमला, झूठी जानकारियां
कुछ लोग अपने केस से जुड़े न्यायाधीशों के बारे में झूठी जानकारियां सोशल मीडिया पर फैलाते हैं। ऐसा वे अपने केस में अपने ढंग से फैसले का दबाव बनाने के लिए करते हैं। ये हमारी अदालतों की पारदर्शिता के लिए खतरा है और कानूनी उसूलों पर हमला है। इनकी टाइमिंग भी तय होती है। जब देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है, तब ये ऐसा कर रहे हैं। हमने यह चीज 2018-19 में भी देखी थी।
सुप्रीम कोर्ट का चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक से इनकार, कहा- चुनाव नजदीक, नए कानून पर रोक लगाई तो सिस्टम बिखर जाएगा
सुप्रीम कोर्ट ने दो नए चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की नियुक्ति पर रोक लगाने वाली याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि 2023 का फैसला नहीं कहता कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सिलेक्शन पैनल में ज्यूडीशियल मेंबर होना चाहिए।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि वह चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अधिनियम 2023 पर फिलहाल रोक नहीं लगा सकती, क्योंकि इससे अव्यवस्था फैल जाएगी।