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अफगानिस्तान में महिलाओं की दुर्दशा…विश्व समुदाय को ठोस कदम उठाने की जरूरत

ByAap Ka Saamna

Jul 1, 2024

काबुल। अफगानिस्तान में तालिबान को तीसरा साल हो गया है। 15 अगस्त, 2021 को उन्होंने दूसरी बार सत्ता पर कब्जा किया था। उम्मीद की जा रही थी कि महिलाओं के प्रति उनके रवैये में तब्दीली आएगी। उनको शिक्षा पाने की इजाजत भी मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारत समेत ऐसे बहुत से देश हैं, जो महिलाओं को शक्तिशाली बनाने में लगे हुए हैं। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी है,घ्जबकि दूसरी तरफ अफगानिस्तान में महिलाओं को कोड़े मारे जाते हैं।

हाल ही में तालिबान द्वारा 14 महिलाओं और 60 से ज्यादा लोगों को दंड के तौर पर सार्वजनिक तौर पर कोड़े मारे गए, जिसकी सारी दुनिया में निंदा हो रही है। उल्लेखनीय है कि तालिबान के 1990 के दशक के शासन में भी यही होता था। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचसीआर ने कहा कि नवंबर, 2022 से अप्रैल, 2023 के बीच अफगानिस्तान में ऐसी शारीरिक सजा के 41 से ज्यादा मामले सामने आए हैं, जिनमें 58 महिलाएं और 274 मर्द और बच्चों को अलग-अलग अपराधों के लिए कोड़े मारे गए। नाबालिग और कमसिन बच्चियों को जबरन शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। लड़कियों में खुदकुशी करने की प्रवृत्ति काफी बढ़ रही है। तालिबान ने सत्ता संभालते वक्त वादा किया था कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। लेकिन वे घर से बाहर अकेले नहीं निकल सकतीं और न  ही नौकरी कर सकती हैं।

अफगानी महिलाएं घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। तालिबान ने अफगानी महिलाओं को उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए विश्वास दिलाया था, लेकिन वहां हो कुछ और ही रहा है। पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली मदद पर रोक लगा दी है।

अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश ऐसे शासन की मदद नहीं करना चाहते, जिसने लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा रखी है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वूमेन ने बताया है कि अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति अत्यधिक चिंताजनक है। उसने वहां महिलाओं का दमन रोकने के लिए वैश्विक कार्रवाई की मांग की है। और कहा है कि अफगानिस्तान में महिलाओं की हालात में सुधार के लिए जरूरी कदम उठाने आवश्यक हैं। तालिबान ने तीन वर्षों के शासन में सुधार का कोई कदम नहीं उठाया। तालिबान ने सत्ता पर कब्जा करके 70 से ज्यादा ऐसे आधिकारिक फरमान जारी किए हैं। और वे अभी तक कायम हैं, जिसका महिलाओं और लड़कियों के जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इस समय 11 लाख लड़कियां स्कूल नहीं जा रहीं और एक लाख से ज्यादा महिलाएं यूनिवर्सिटी में पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं।

महिलाएं निर्णय लेने का अधिकार हासिल करना चाहती हैं। वे न केवल अपने घरों में, बल्कि सरकार व अन्य स्थानों पर भी अधिकार चाहती हैं, लेकिन उनकी ये मांगें पूरी नहीं हो रही हैं।

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