नई दिल्ली। बिहार के बाद कर्नाटक में जातिगत जनगणना रिपोर्ट पेश कर दी गई है। राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने गुरुवार को यह रिपोर्ट पेश की। भले ही रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है लेकिन इसको लेकर विवाद शुरू हो गया है। खुद सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के विधायकों ने इसका विरोध किया है। विपक्षी भाजपा ने भी जातिगत जनगणना रिपोर्ट पर सवालिया निशान खड़े किए हैं।
इस बीच, राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि वह भविष्य की कार्रवाई तय करने के लिए कैबिनेट बैठक में जाति जनगणना रिपोर्ट पर चर्चा करेंगे। 2014 में सिद्धारमैया सरकार ने जातिगत सर्वे कराने का आदेश दिया था। आइये जानते हैं कि कर्नाटक में जातिगत जनगणना रिपोर्ट को लेकर क्या हुआ है? रिपोर्ट में क्या-क्या शामिल है? इसको लेकर विवाद क्या है? भाजपा का क्या कहना है? इससे पहला किन राज्यों में इस तरह का सर्वे हुआ है?
कर्नाटक में जातिगत जनगणना रिपोर्ट को लेकर क्या हुआ है?
राज्य के ओबीसी आयोग ने 29 फरवरी को जातिगत जनगणना रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। इस रिपोर्ट को सामाजिक आर्थिक सर्वे नाम दिया गया है। सर्वे रिपोर्ट को ओबीसी आयोग के अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े ने अपने कार्यालय के आखिरी दिन विधानसभा पहुंचे और सीएम सिद्धारमैया से मुलाकात की।
मीडिया से बात करते हुए ओबीसी आयोग के अध्यक्ष ने कहा, हमने रिपोर्ट सौंप दी है। सीएम ने कहा कि वह इसे अगली कैबिनेट में पेश करेंगे और इसपर फैसला लेंगे। हालांकि, मुख्यमंत्री ने इस पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
जातिगत जनगणना रिपोर्ट को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। हालांकि, मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अनुसूचित जाति को सबसे अधिक आबादी वाला बताया गया है। दूसरे स्थान पर मुसलमानों को रखा गया है। इसके बाद क्रमश लिंगायत और वोक्कालिगा को रखा गया है।
जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है वो कई साल पुरानी है। दरअसल, 2014 में कर्नाटक में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सिद्धारमैया सरकार एक सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था। यह सर्वे 127वें संविधान संशोधन विधेयक के अनुसार, ओबीसी के आनुपातिक आरक्षण पर निर्णय लेने के लिए किया गया था।