बीजिंग। चीन ने ताइवान की आजादी की मांग करने वाले लोगों को मौत की सजा्य की धमकी दी है। हालांकि चीन की इस धमकी को बेअसर माना जा रहा है क्योंकि ताइवान की आजादी की मांग चीन में नहीं होती है। ये मांगे ताइवान में होती हैं जहां चीनी अदालत के नियम नहीं चलते।
रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने नई गाइडलाइन जारी की। इसमें कहा गया है कि ताइवान की आजादी की मांग करने वाले नेताओं के कदम से यदि देश या जनता को किसी भी प्रकार का नुकसान होता है तो मौत की सजा दी जा सकती है। इसके अलावा सजा के तौर पर 10 साल की सजा का भी प्रावधान है।
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक गाइडलाइन में कहा गया है कि चीन की अदालतें, सरकारी वकील और सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियां ताइवान की आजादी चाहने वाले लोगों को देश को बांटने और अलगाववाद भड़काने के आरोप में कड़ी सजा दी जाए। देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता के रक्षा की जानी चाहिए। चीन, ताइवान में पिछले ही महीने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले लाई चिंग-ते को श्खतरनाक अलगाववादीश् मानता है। चीन ने ताइवान के राष्ट्रपति को लेकर दावा किया है कि वो चीन के खिलाफ युद्ध छेडऩा चाहते हैं। वहीं ताइवान के राष्ट्रपति चिंग ते ने चीन के बढ़ते दबाव की शिकायत की है। उनका कहना है कि चीन ताइवान के आसपास द्वीपों के पास आक्रमक तरीके से मिलिट्री एक्शन, कोस्टगार्ड पेट्रोलिंग और ट्रेड सैंक्शन लगा रहा है।
चीन ताइवान को अपना ही हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है। चीन और ताइवान के बीच ये झगड़ा 73 साल से चला आ रहा है। दरअसल, चीन के साथ ताइवान के बीच पहला कनेक्शन 1683 में हुआ था। तब ताइवान क्विंग राजवंश के अधीन हुआ था।अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ताइवान की भूमिका 1894-95 में पहले चीन- जापान युद्ध के दौरान सामने आई।
जापान ने क्विंग राजवंश को हराकर ताइवान को अपना उपनिवेश बना लिया। इस पराजय के बाद चीन कई भागों में बिखर गया। कुछ साल बाद चीन के बड़े नेता सुन्-यात-त्सेन ने चीन को एकजुट करने के उद्देश्य से 1912 में कुओ मिंगतांग पार्टी बनाई। हालांकि उनका रिपब्लिक ऑफ चाइना का अभियान पूरी तरह सफल हो पाता उससे पहले ही 1925 में उनकी की मृत्यु हो गई।
इसके बाद कुओ मिंगतांग पार्टी के दो टुकड़े हो गए। नेशनलिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी। नेशनलिस्ट पार्टी जनता को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देने के पक्ष में थी, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी डिक्टेटरशिप में भरोसा रखती थी। इसी बात पर चीन के भीतर गृहयुद्ध शुरू हुआ। 1927 में दोनों पार्टियों के बीच नरसंहार की नौबत आ गई। शंघाई शहर में हजारों लोगों को मार गिराया गया। यह गृह युद्ध 1927 से 1950 तक चला।
इसका फायदा जापान ने उठाया और चीन के बड़े शहर मंजूरिया पर कब्जा कर लिया। तब दोनों पार्टियों ने मिलकर जापान का मुकाबला किया और द्वितीय विश्व युद्ध (1945) में जापान से मंजूरिया को छुड़ाने में सफल रहा। कुछ दिन बाद जापान ने ताइवान पर भी अपना दावा छोड़ दिया।
इसके बाद दोनों पार्टियों में फिर झगड़े शुरू हो गए। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी चीन और ताइवान। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी यानी माओ त्से तुंग का शासन था, जबकि ताइवान में नेशनलिस्ट कुओमितांग यानी चियांग काई शेक का शासन था। दोनों के बीच संपूर्ण चीन पर कब्जे के लिए जंग हुई। रूस की मदद से कम्युनिस्ट जीत गए और शेक को ताइवान में समेट दिया। यानी ताइवान तक सीमित कर दिया।
दरअसल, ताइवान द्वीप पेइचिंग से दो हजार किमी दूर है। माओ की नजर फिर भी ताइवान पर रही और वे उसे चीन में मिलाने पर अड़े रहे। समय समय पर झगड़े होते रहे, लेकिन चीन कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि, ताइवान के पीछे अमेरिका खड़ा हो गया। कोरिया वॉर को दौरान अमेरिका ने ताइवान को न्यूट्रल घोषित कर दिया।
1953 में जब कोरिया वॉर खत्म हुआ तो अमेरिका ने अपना नौसैनिक बेड़ा ताइवान से बुला लिया और इसके तुरंत बाद चीन ने ताइवान पर धावा बोल दिया। सात महीने चली इस लड़ाई में चीन हावी रहा और उसने कुछ विवादित द्वीपों पर कब्जा कर लिया, लेकिन ताइवान को पूरी तरह जीतने में चीन अब भी नाकाम रहा। अमेरिका फिर मैदान में आया और नौबत जंग की आ गई।
6 अक्टूबर 1958 को आखिर युद्ध विराम हो गया। 1945 में जब पुरानी लीग ऑफ नेशंस की जगह यूनाइटेड नेशंस ने ली तो उसने काई शेक वाले चीन, यानी ताइवान को मान्यता दी। कम्युनिस्ट चीन को नहीं। फिर 25 अक्टूबर 1971 में हृ ने ताइवान को निकालकर कम्युनिस्ट चीन को मान्यता दे दी। अमेरिका ने भी अपना लाभ-शुभ देखकर 1978 में कम्युनिस्ट चीन को मान्यता दे दी।