कोरोना वायरस पिछले चार साल से अधिक समय से वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिमों का कारण बना हुआ है।
वैक्सीनेशन और हर्ड इम्युनिटी ने दुनियाभर में संक्रमण के कारण गंभीर रोगों के खतरे को तो कम कर दिया है, पर वायरस में म्यूटेशन और नए वैरिएंट्स के कारण संक्रमण की दर अब भी चिंता का कारण बनी हुई है। मसलन कोरोना महामारी को अब भी खत्म नहीं माना जा सकता है।
इस बीच वैज्ञानिकों ने दुनियाभर को एक नई संभावित महामारी को लेकर आगाह किया है।
वैज्ञानिकों ने अलर्ट किया है कि हमें एक नई और विचित्र महामारी के खतरे को लेकर अभी से सावधान रहना चाहिए।
इसके लिए जोंबी वायरस को संभावित कारण माना जा रहा है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि बर्फ के बड़े हिस्से के नीचे जोंबी वायरस मिलने की खबरें हैं, आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से ये वायरस निकल सकते हैं, जिससे एक बड़ी बीमारी का प्रकोप और नई वैश्विक चिकित्सा आपात की स्थिति पैदा होने का भी खतरा हो सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस वायरस के फैलने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
जोंबी वायरस से संक्रमण का खतरा
ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी में आनुवंशिकीविद् जीन-मिशेल क्लेवेरी कहते हैं, फिलहाल, महामारी के खतरों का विश्लेषण उन बीमारियों पर केंद्रित है जो दक्षिणी क्षेत्रों में उभर सकती हैं और फिर उत्तर में फैल सकती हैं।
ये वायरस मनुष्यों को संक्रमित करने और एक नई बीमारी का प्रकोप शुरू करने की क्षमता रखते हैं।
इरास्मस मेडिकल सेंटर के वायरोलॉजिस्ट मैरियन कूपमैन्स ने इससे सहमति जताई और कहा, हम नहीं जानते कि पर्माफ्रॉस्ट में कौन-कौन से वायरस पड़े हैं। हालांकि, मुझे लगता है कि यह बड़ा जोखिम है जो बीमारी फैलने में सक्षम हो सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण फैल सकता है वायरस
संक्रामक रोग विशेषज्ञ बताते हैं, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के साथ, कई ग्लेशियर और पर्माफ्रॉस्ट वर्षों से लगातार पिघल रहे हैं।
इस अपरिवर्तनीय पर्माफ्रॉस्ट पिघलन ने वर्षों से बर्फ में जमे कई बैक्टीरिया और वायरस को मुक्त कर दिया है। पिघली हुई बर्फ से पुनर्जीवित हुआ ऐसा ही एक वायरस है जॉम्बी वायरस।
इस प्रकार के वायरस बर्फ के अंदर फंसे रहने के कारण निष्क्रिय रहते हैं, लेकिन ये फिर से सक्रिय होकर स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ाने की क्षमता रखते हैं।
हजारों साल पुराने वायरस हो सकते हैं फिर से सक्रिय
साल 2014 में वैज्ञानिकों की एक टीम ने साइबेरिया में जीवित वायरस पर किए शोध में पाया कि वर्षों बाद भी ये वायरस एकल-कोशिका जीवों को संक्रमित कर सकते हैं, भले ही वे हजारों वर्षों से पर्माफ्रॉस्ट में दबे हुए हों।
पिछले साल प्रकाशित शोध में बताया गया है कि साइबेरिया में सात अलग-अलग साइटों से कई वायरस के अस्तित्व का पता चला और जो मानवों में गंभीर रूप से संक्रमण का जोखिम बढ़ाने वाले हो सकते हैं।
एक वायरस का सैंपल 48,500 साल पुराना था, जो अब भी एक्टिव होकर गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का कारण बन सकता है।
अलर्ट वैज्ञानिक पर
वैज्ञानिकों का मानना है कि पर्माफ्रॉस्ट में ऐसे वायरस हो सकते हैं जो दस लाख साल तक पुराने हैं। प्रोफेसर क्लेवेरी कहते हैं, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कभी भी इन रोगाणुओं के संपर्क में नहीं रही होगी और यह एक और चिंता की बात है। एक अज्ञात वायरस के संपर्क में आने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर गंभीर असर हो सकता है, जैसा कि कोरोना की शुरुआत में देखा गया था।
फिर भी कोरोना के वैरिएंट्स दशकों पहले संक्रमण का कारण बन चुके थे। नए वायरस के कारण जोखिमों को कम करने, शुरुआती मामलों की पहचान और उन्हें स्थानीय स्तर पर ठीक करने के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम अभी से प्रयास कर रही है।